खराब मौखिक स्वच्छता एवं फेफड़ो का संक्रमण

खराब मौखिक स्वच्छता एवं फेफड़ो का संक्रमण (कोविड 19) : क्या है सम्बन्ध??
डॉ निखिता नागर
दन्त रोग विशेषज्ञ
(डॉ नागर्स डेंटल एंड फिजियोथेरेपी सेण्टर, ग़ाज़ियाबाद)

कोरोना वायरस (कोविड -19) को अस्तित्व में आए 6 महीने से ज्यादा  वक्त हो चुका है और अब तक दुनियाभर के 1 करोड़ से ज्यादा लोग इस नए नॉवेल कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं। अब तक इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज खोजा नहीं जा सका है और इस वजह से कोविड-19 संक्रमित मरीज का मौजूदा समय में इलाज सिर्फ उनके लक्षणों जैसे- बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ को कम करने के लिए किया जा रहा है।

डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि 60 साल से अधिक के बुजुर्ग और वैसे लोग जिन्हें पहले से कोई बीमारी है उनमें कोविड-19 इंफेक्शन के लक्षणों के गंभीर होने का खतरा सबसे अधिक है। हालांकि ब्रिटिश डेंटल जर्नल में 26 जून 2020 को प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो वैसे लोग जिनकी मौखिक स्वच्छता खराब है यानी जो लोग अपनी मुंह की साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखते उनमें भी कोविड-19 इंफेक्शन होने का खतरा अधिक है। खासकर उन लोगों में जिन्हें पहले से कोई बीमारी है।

इससे पहले हुए अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि मुंह में बैक्टीरिया और वायरल लोड अधिक होने पर शरीर में पहले से मौजूद बीमारियां जैसे हृदय रोग, कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियां और अधिक जटिल हो जाती हैं। ऐसा होने से उस व्यक्ति को कोविड-19 इंफेक्शन के गंभीर लक्षण होने का खतरा भी बढ़ जाता है। 
ब्रिटिश डेंटल जर्नल में प्रकाशित इस नई स्टडी में यह बात स्पष्ट तौर पर कही गई है कि मुंह में अगर बैक्टीरिया का लोड अधिक हो तो इससे कोविड-19 के मरीज के शरीर में बैक्टीरियल सुपरइंफेक्शन और कई दूसरी जटिलताएं जैसे- निमोनिया, अक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम और सेप्सिस होने का खतरा अधिक होता है।

मुंह के बैक्टीरिया की वजह से फेफड़ों में संक्रमण-

आमतौर पर ऐसा देखने को मिलता है कि निचले श्वसन पथ (लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट) में होने वाला इंफेक्शन वायुमंडल में मौजूद संक्रामक बूदों में शामिल सूक्ष्मजीवाणुओं को सांस द्वारा अंदर लेने से होता है या फिर मुंह (ओरल कैविटी) में मौजूद संक्रामक सूक्ष्मजीवों जैसे- पी.जिन्जिवलिस, एफ.न्यूक्लिटम और पी.इंटरमीडिया की वजह से।

मुंह की ठीक ढंग से साफ-सफाई न करने के कारण मसूड़ों में भी सूजन और जलन की गंभीर समस्या हो सकती है। इसके बाद मसूड़ों के नीचे मौजूद हड्डी जिसे चिकित्सीय भाषा में पेरीयाडॉनटाइटिस कहते हैं का खंडन होने लगता है। पेरीयाडॉनटाइटिस की समस्या से पीड़ित मरीज के लार (सलाइवा) में कुछ निश्चित तरह के एन्जाइम्स भी पाए जाते हैं जैसे- एस्पार्टेट एंड एलानाइन एमीनोट्रांसफेरेस (ast, alt), लैक्टेट डिहाईड्रोजेनीज (ldh), क्रीटीन कैनेस (ck), अल्कालाइन एंड एसिडिक फॉस्फेटेस (alp, acp) और गामा-ग्लूटामाइल ट्रांसफेरेज (ggt)।

ये सभी एन्जाइम्स मुंह के अंदर मौजूद श्लेष्म झिल्ली को इस तरह से परिवर्तित कर देते हैं कि वे फेफड़ों में संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया को श्लेष्म झिल्ली में चिपकने और बढ़ने की इजाजत देते हैं। वैज्ञानिक आगे बताते हैं कि साइटोकीन्स (शरीर में मौजूद एक तरह की इम्यून कोशिका) जैसे- इंटरल्युकिन-1 और टीएनएफ जो पेरीयाडॉनटाइटिस से पीड़ित उत्तकों में मौजूद रहते हैं वे घुलकर लार में पहुंच जाते हैं और फिर इन्हें फेफड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। ये साइटोकीन्स फेफड़ों के कोशिकीय परतों में कुछ परिवर्तन कर देते हैं जिससे इंफेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया फेफड़ों में बढ़ने लगते हैं। 

मुंह में मौजूद बैक्टीरिया और निमोनिया-

यह बात भी रिपोर्ट की गई है कि ओरल कैविटी यानी मुंह में मौजूद बैक्टीरिया, निमोनिया और सेप्सिस जैसी स्थितियों को शुरू करने और बढ़ाने का काम करते हैं। पेरीयाडॉन्टल बैक्टीरिया पी.जिन्जिवलिस, एफ.न्यूक्लिटम और पी.इंटरमीडिया का निमोनिया पर क्या असर होता है यह जानने के लिए टेस्ट किया गया तो उसके नतीजों में ये बात सामने आयी कि पी.इंटरमीडिया पेरीयाडॉनटाइटिस से पीड़ित लोगों में गंभीर निमोनिया को शुरू करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। 

जापान में बेतरतीब तरीके से किए गए नियंत्रित परीक्षण में, एक नर्सिंग होम में 417 रोगियों को हर बार भोजन के बाद मौखिक देखभाल यानी ओरल केयर की सुविधा दी गई थी और इन लोगों की तुलना उस नियंत्रित समूह के साथ की गई जिन्हें मौखिक देखभाल नहीं मिली थी। इस अध्ययन का बाद में निष्कर्ष निकला कि नियंत्रण समूह से बाहर, 19% लोगों को निमोनिया हुआ जबकि वैसे लोग जिन्हें ओरल केयर यानी मुंह की सफाई की सुविधा दी गई उनमें से सिर्फ 11% लोगों को निमोनिया हुआ।

इस स्टडी से क्या निष्कर्ष निकलता है?
डॉ नागर कहतीं हैं कि इस स्टडी के नतीजों से यही निष्कर्ष सामने आया कि अगर कोई व्यक्ति अपनी मुंह की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखे तो उसे फेफड़ों में संक्रमण होने के खतरे को कम किया जा सकता है। इसके अलावा कोविड-19 से जुड़ी कई जटिलाएं जैसे- निमोनिया और सेप्सिस के खतरे को भी कम किया जा सकता है। इसके लिए बेहद जरूरी है कि लोग रोजाना 2 बार अच्छी तरह से ब्रश करें ताकि वे अपने मुंह को बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से बचा सकें। पेरीयाडॉन्टाइटिस से पीड़ित लोगों को नियमित रूप से अपने डेंटिस्ट के पास जाकर दांतों और मुंह की सही तरीके से सफाई करवानी चाहिए।
कोविड-19 से डरें नही, सावधानी बरतें। खुद भी स्वस्थ रहें और अपने अपनों को भी स्वस्थ रखें।।

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